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कविता

नीच

मुंशी रहमान खान


नीच निचाई नहिं तजैं नहिं मानैं वे पोष।
अपना मतलब गाँठ कर तुम को देवैं दोष।।
तुमको देवैं दोष पास कबहूँ नहिं आवैं।
पडै़ तुम्‍हारा काम तुम्‍हैं बहु भाव बतावैं।।
कहैं रहमान कहुँ नहिं परियो तुम नीचन के बीच।
बुद्धि तुम्‍हारी लेय कर तुम्‍हैं बतावैं नीच।।

 


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